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बचपन की तस्वीर

बचपन में मैंने भी एक तस्वीर बनाई थी, कागज़ पर नहीं सपनो पर रँगाई थी चाहत की कलम से बनी सच्चाई की परछाई थी, पलकों पर रंग बिछाते हुए सादी तस्वीर बनाई थी लाल रंग खुशियों का इस में मेरे अपनों ने छिड़काया था, मस्त मलंग दोस्तों ने भी जम कर हरा रंग मिलाया था पर जैसे - जैसे बचपन बीता रंग फ़ीके पड़ते गए, दुनियादारी के अनोखे रंग मेरी तस्वीर पर भी चढ़ते गए अरमानों का जो रंग था काली सियाही में दब गया, इच्छाओं की कलमों ने देखो तस्वीर को ही बदल दिया खुदा की बख्शी ज़िन्दगी में हम खुद ही उलझे जाते हैं, ज़िम्मेदारी के बोझ में निर्दोष चाहत दबाए जाते हैं दूसरों को खुश करते करते सारे रंग बदल डाले, अब याद भी नहीं आता कि मैंने क्या तस्वीर बनाई थी अब जब यह एहसास हुआ है कुछ तो बदलाव लाऊँगा, बच्चों की बनाई तस्वीर में हर पल रंग बरसाऊँगा काली परछाई ना आने दूँगा उनकी रंगीन दुनिया में, जो करती है सपनो को फ़ीका उस जीवन धूप से बचाऊँगा शायद उन की तस्वीर में ही छुपी होगी, मैंने जो तस्वीर बनाई थी, कागज़ पर नहीं जो सपनो पर रँगाई थी

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